जीवन मेरा, प्यार तुम्हारा, मुझपर है अधिकार तुम्हारा। बस, अब तो हो जाओ राज़ी, वो मेरा, संसार तुम्हारा। मैं तो सच की राह चलूँगा, झूठ भरा घर-बार तुम्हारा। सुख दो, दुख दो, सब सर माथे, जो कुछ है, स्वीकार तुम्हारा। क्यों काँटों जैसा लगता है, मुझपर हर उपकार तुम्हारा। ठेठ निकम्मे हो, फिर कैसे- सपना हो साकार तुम्हारा। मां मैं कब से सोच रहा हूँ, कैसे उतरे भार तुम्हारा।
अब इनकी किस्मत है चाहे जितनी दूर तलक जाएँ, मैंने कोरे कागज़ पर अल्फाज़ के पंछी छोड़े हैं।