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दिसंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग़ज़ल

वक़्त चुपके से मेरे दिल की कहानी लिख गया। मेरी सूनी आँखों में दरिया का पानी लिख गया। ये उसी का ही असर था, जो किताबे जीस्त के- हर सफे पे उसकी ही यादें पुरानी लिख गया। आंसुओं को अब चुकाना ही पड़ेगा, क्योंकि दिल- अब तलक जो क़र्ज़ था, सारा ज़बानी लिख गया। कौन था वो, जो मेरे दिल को समंदर कह गया, और आँखें, आंसुओं की राजधानी लिख गया।

ग़ज़ल

तुम कभी इसके, कभी उसके, कभी उसके हुए। सोचता हूँ जिंदगी भर तुम भला किसके हुए। वो मेरे नगमे चुराकर महफिलों में छा गया, मेरे हिस्से में रहे अहसास कुछ सिसके हुए। करवटें लेते रहे हम, ख्वाब भी आये नहीं, हाथ आये नींद के टुकड़े कई खिसके हुए। माँ ने बोला था कि बेटा उसको तो मत भूलना, जिसकी चाहत के दुपट्टे में बंधे, जिसके हुए। उसने मेरी दर्द में डूबी कहानी यूँ सुनी, जैसे वो कोई कहानी ना हुई, चस्के हुए।

ग़ज़ल

सुख कम हैं, दुःख हज़ार बुजुर्गों के वास्ते। कैसी समय की मार बुजुर्गों के वास्ते। जो फूल थे, औलादें उठाकरके ले गईं, बाकी बचे जो खार बुजुर्गों के वास्ते। गैरों को करें रोज़ ही ईमेल, एसमएस, चिठ्ठी न कोई तार बुजुर्गों के वास्ते। बेटा गया विदेश तो बेटी न पास है, बस यादें बेशुमार बुजुर्गों के वास्ते। बेटों ने जो ज़मीन थी आपस में बाँट ली, जो था बचा उधार बुजुर्गों के वास्ते। सेवा करेगा इनकी तो आशीष मिलेंगे, चेतन तू हो तैयार बुजुर्गो के वास्ते.

हमेशा साथ में रखना

ये तो ताज़ा हवाएं हैं, हमेशा साथ में रखना ये मौसम की अदाएं हैं, हमेशा साथ में रखना, नसीहत, चाहतें, आशीष, नुस्खे, झिडकियां, ये सब- बुजुर्गों की दुआएं हैं, हमेशा साथ में रखना।