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मार्च, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सौ-सौ नहीं हजारों अभिनन्दन करना

जिसने बढते तूफानों को थाम लिया, आँसू से भी अंगारों का काम लिया, जिसका पौरुष देख पराजित पाक हुआ, सभी विरोधी अमला हटा हलाक हुआ, जिसने की मरने मिटने की तैयारी, जान गँवा दी, लेकिन बाज़ी न हारी, ऐसे अमर शहीद का तुम वंदन करना, सौ-सौ नहीं हजारों अभिन्दन करना। मांग भरी थी उसने कल ही दुल्हन की, खनखन भी पूरी न सुनी थी कंगन की, चाँद सरीखा मुखड़ा तक न देख सका, एक रात की अंगडाई तक नहीं रुका, रुनझुन करती पायल के स्वर मौन हुए, सिहरन ने भी होंठ हृदयके नहीं छुए, भरी गुलाबों की डाली को भूल गया, फांसी के फंदे पर जाकर झूल गया, ऐसे अमर शहीद का तुम वंदन करना, सौ-सौ नहीं हजारों अभिनन्दन करना। दो ही दिन तो हुए थे घर आया था वो, केक पेस्ट्री थैला भर लाया था वो, जन्मदिवस उसके बच्चे का पहला था, जीवनपथ का पल ये नया रुपहला था, लेकिन सजते-सजते कमरा छूट गया, वक्त लुटेरा बनकर खुशियाँ लूट गया, एक तार ने तार-तार सब तार किए, फिर भी जिसने माँ की खातिर प्राण दिए, ऐसे अमर शहीद का तुम वंदन करना, सौ-सौ नहीं हजारों अभिनन्दन करना। श्रवन सरीखा, एकलव्य सा प्यारा था, अंधे की लाठी, आंखों का तारा था, एक अकेला चाँद, सुदीपक सूबे का, घर

गीत -- अभी तो और चलना है

मेरी सोई हुई पीढ़ी, उठो फिर से संभलना है, यही मंजिल नहीं अपनी, अभी तो और चलना है। सितारे गुम हैं अम्बर से, जुदा हर शाख तरुवर से, सभी वातावरण बिखरा, सितारों का चमन बिखरा, सितारों को उगाना है, चमन फिर से सजाना है, नए श्रम के नगीने से, कि अपने ही पसीने से, तुम्हें अब प्यार से ही, नफरतों का रुख बदलना है। यही मंजिल नही अपनी, अभी तो और चलना है। ज़रूरत चेतना की है, ज़रूरत साधना की है, ज़रूरत एकता की है, समन्वय वंदना की है, बनो मुस्कान की दुनिया, नई पहचान की दुनिया, अकेली गूँज से हटकर, बनो सहगान की दुनिया, अँधेरी राह में सूरज, तुम्हें बनकर निकलना है। यही मंजिल नहीं अपनी, अभी तो और चलना है।

होली है जी होली है

गली-गली घूमती है, आसमान चूमती है, मस्त है, मलंग है, तरंग भरी टोली है। रूखे, सूखे अधरों पे मीठी मुस्कान ऐसे- जैसे किसी नीम पे टंगी हुई निबोली है। बात-बात प्रतिघात, झंजावात, चक्रवात, शब्द-शब्द ऐसे जैसे दनदनाती गोली है। रंग भरी पिचकारी उसने उठाके कहा- सोचते हो कान्हा क्या यूँ होली है जी होली है.

ग़ज़ल-5

थी बहुत दिन से अधूरी जो कमी पूरी हुई। तेरे आने से हमारी ज़िन्दगी पूरी हुई। द्वार, छत, दीवार, आँगन, कोने-कोने देख लो, सब हुए रोशन तुझी से रौशनी पूरी हुई। आंख से चलकर उतर आए जो आंसू होंठ पर, है बहुत रहत, चलो कुछ तो हँसी पूरी हुई। सब लबालब हो चुके थे आँख, सपने, नींद, मन, नाम लेते ही तेरा ये साँस भी पूरी हुई। देख ली रोशन नज़र तेरी तो हमको ये लगा, ये ग़ज़ल जो थी अधूरी, बस अभी पूरी हुई।