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ग़ज़ल

सुख कम हैं, दुःख हज़ार बुजुर्गों के वास्ते।
कैसी समय की मार बुजुर्गों के वास्ते।

जो फूल थे, औलादें उठाकरके ले गईं,
बाकी बचे जो खार बुजुर्गों के वास्ते।

गैरों को करें रोज़ ही ईमेल, एसमएस,
चिठ्ठी न कोई तार बुजुर्गों के वास्ते।

बेटा गया विदेश तो बेटी न पास है,
बस यादें बेशुमार बुजुर्गों के वास्ते।

बेटों ने जो ज़मीन थी आपस में बाँट ली,
जो था बचा उधार बुजुर्गों के वास्ते।

सेवा करेगा इनकी तो आशीष मिलेंगे,
चेतन तू हो तैयार बुजुर्गो के वास्ते.

टिप्पणियाँ

  1. चेतन जी आपकी गज़लें लाजवाब हैं । मैने तो अभी 2-3 महीने पहले सीखनी शुरू की है मगर मुझे नहीं लगता कि आपकी गज़लों की तरह मैं कभी लिख पाऊँगी। धीरे धीरे सभी गज़लें पढूँगी आपकी। धन्यवाद

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प्यार के दोहे

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दो मुक्तक

चलते रहना बहुत ज़रूरी है, दिल की कहना बहुत ज़रूरी है, देखो, सागर बनेंगे ये आंसू, इनका बहना बहुत ज़रूरी है। शहर आँखों में समेटे जा रहे हैं, स्वार्थ की परतें लपेटे जा रहे हैं, छोड़कर माँ-बाप बूढ़े, कोठरी में, बीवियों के संग बेटे जा रहे हैं.

मुक्तक

यूँ भी हुए तमाशे सौ। पाया एक, तलाशे सौ। जब भी उसका नाम लिया, मुंह में घुले बताशे सौ। यूँ समझो था ख्वाब सुनहरा याद रहा। मुझे सफ़र में तेरा चेहरा याद रहा। कैसे कह दूँ तेरी याद नहीं आई, रस्ते भर खुशबु का पहरा याद रहा.