ग़ज़ल -1
अगर ये प्यार है तो प्यार के ये दरमियाँ भी हो
न हम बोलें, न तुम बोलो, मगर किस्सा बयां भी हो
जहाँ दिल से मिलें दिल एक ऐसा कारवां भी हो
कहाँ पर हो, कहाँ कह दूँ, यहाँ भी हो, वहां भी हो।
उसे सूरज दिया, चंदा दिया, तारे दिए फिर भी,
वो कहता, मेरे हिस्से में अब ये आसमां भी हो।
भला तू ही बता, मैं शर्त उसकी मान लूँ कैसे,
वो कहता है, कापर का परिंदा बेजुबां भी हो।
मुझे थी चाह जिसकी वो तेरा दिल मिल गया मुझको
मुझे क्या काम तेरे जिस्म से, चाहे जहाँ भी हो.
अगर ये प्यार है तो प्यार के ये दरमियाँ भी हो
न हम बोलें, न तुम बोलो, मगर किस्सा बयां भी हो
जहाँ दिल से मिलें दिल एक ऐसा कारवां भी हो
कहाँ पर हो, कहाँ कह दूँ, यहाँ भी हो, वहां भी हो।
उसे सूरज दिया, चंदा दिया, तारे दिए फिर भी,
वो कहता, मेरे हिस्से में अब ये आसमां भी हो।
भला तू ही बता, मैं शर्त उसकी मान लूँ कैसे,
वो कहता है, कापर का परिंदा बेजुबां भी हो।
मुझे थी चाह जिसकी वो तेरा दिल मिल गया मुझको
मुझे क्या काम तेरे जिस्म से, चाहे जहाँ भी हो.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें